
त्याग का भाग्य
सिर्फ एक बात का त्याग सर्व त्याग सहज और स्वत करता है ! वह एक त्याग है - देहभान का
त्याग, हद के में - पण का त्याग सहज करा देता है ............अपने पण का त्याग अथवा में - पन
समांप्त हो गया !एक की लग्न में मगन तपस्वी बन गये तो सेवा के सिवाए रह नहीं सकते ! यह हद का में और मेरा सच्ची सेवा करने नहीं देता ! त्यागी और तपस्वी मूर्त सच्चे सेवाधारी है !
( अव्यक्त वाणी - ८.४.८४)
श्रीमत पर चलने से रेस्पोंसिब्लिटी बाप की
धारणा की कमी के कारण मेह्न्नत लगती है ! कई कर्तव्यों में लोग कह देते है की इनके
भाग्य में नहीं है ! यहाँ तो ऐसे नहीं कहेंगे ! किस विशेष कमी के कारण मेह्न्नत लगती है !
श्रीमत पर चलना है फिर भी क्यों नहीं चल पाते ? कोई भी कार्य में चाहे पुरषार्थ, चाहे
सेर्विस में मेह्न्नत लगने के कारण यह है की बाते तो सभी की बुद्धि में है लेकिन इन बातो की
महीनता में नहीं जाते ! महीन बुद्धि को कभी मेह्न्नत नहीं लगती ! मोठी बुद्धि कारण बहुत
मेह्न्नत लगती है ! श्रीमत पर चलने के लिए भी महीन बुद्धि चाहिये ! ( अव्यक्त वाणी १३.११.६९)
No comments:
Post a Comment