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- Murli 04 Jan 2012
Posted by : PooMac Photography Studio
Tuesday, January 3, 2012
''मीठे बच्चे - 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनने के लिए इस थोड़े समय में देही-अभिमानी बनने की आदत डालो'' प्रश्न: दैवी राजधानी स्थापन करने के लिए हर एक को कौन सा शौक होना चाहिए? उत्तर: सर्विस का। ज्ञान रत्नों का दान कैसे करें, यह शौक रखो। तुम्हारी यह मिशन है - पतितों को पावन बनाने की इसलिए बच्चों को राजाई की वृद्धि करने के लिए खूब सर्विस करनी है। जहाँ भी मेले आदि लगते हैं, लोग स्नान करने जाते हैं वहाँ पर्चे छपाकर बांटने हैं। ढिंढोरा पिटवाना है।
गीत:- तुम्हें पाकर हमने जहाँ पा लिया है... धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान की कड़ियां (जंजीर) काट देही-अभिमानी बनना है। सोल कान्सेस रहने का संस्कार डालना है।
2) सर्विस का बहुत शौक रखना है। बाप समान पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है। सच्चा हीरा बनना है। वरदान: ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खिलाने वाले श्रेष्ठ नसीबवान भव विश्व के मालिक के हम बालक सो मालिक हैं-इसी ईश्वरीय नशे और खुशी में रहो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् नसीब। इसी खुशी के झूले में सदा झूलते रहो। सदा खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते भी हो। औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो। आपकी जीवन ही खुशी है। खुश रहना ही जीना है। यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है। स्लोगन: हर परिस्थिति में सहनशील बनो तो मौज का अनुभव करते रहेंगे।
परमात्म प्यार में समा जाओ
जो प्यारा होता है उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा-तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। सिर्फ मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।
जो प्यारा होता है उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा-तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। सिर्फ मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।