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- Points to Churn from the Murli of June 29, 2011:
Posted by : PooMac Photography Studio
Tuesday, June 28, 2011
ॐ शान्ति दिव्य फ़रिश्ते !!
विचार मंथनके पॉइंट्स: जून २९, २०११:
मेरा बाबा ..प्यारा बाबा ..मीठा बाबा ..दयालु बाबा .. कृपालु बाबा ....
बाबा की महिमा ....
मैं ब्राहमण कुल भूषण हूँ ......... विष्व का मालिक हूँ ...........
हरेक पॉइंट कम से कम ५ मिनट देही-अभिमानी स्थिति में विचार मंथन करें:
स्वमान और आत्मा का अभ्यास ....
१. हम - मैं आत्मा विष्व का मालिक हूँ...
२. हम - मैं आत्मा त्रिकालदर्शी हूँ...
३. हम - मैं आत्मा बाप समान हूँ ....... मास्टर नाँलेजफुल हूँ...
४. हम - मैं आत्मा अद्धेत धर्म वाला देवता हूँ.......................
५. हम - मैं आत्मा बालक सो मालीक हूँ ........ सर्व प्राप्ति सम्पन्न हूँ...
६. हम - मैं आत्मा महासागर का बच्चा हूँ ........ मास्टर सागर हूँ...
७. हम - मैं अलौकिक हूँ ....... अधिकारी हूँ ........ बालक सो मालिक हूँ...
८. हम - मैं आत्मा सम्पन्न बाप का सम्पन्न बच्चा हूँ ....... नेचरल योगी हूँ...
९. हम - मैं आत्मा नेचरल स्वराज्य अधिकारी हूँ...
१० हम - मैं आत्मा कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने वाला सर्व श्रेष्ठयोगी हूँ...
योग कोमेंट्री .............................. . १) मैं आत्मा ब्राहमण कुल भूषण मूलवतन का रहवासी हूँ .......यहाँ कर्मक्षेत्र पर अपना पार्ट बजा रहा हूँ ....... मैं आत्मा श्रीमत पर अपने लिए आदि सनातन देवी देवता धर्म की राजधानी स्थापन करने वाला खुशनसीब ब्राहमण हूँ .......... हम आत्मायें एक बाप के बच्चें भाई भाई हैं .......वन नेस वाले है .......... विश्व के मालिक हैं ........बालक सो मालिक हूँ....... मैं अलौकिक बाप का अलौकिक बच्चा हूँ .........अनन्य हूँ .......... समझदार हूँ ........ बाप का पवित्र बच्चा हूँ ........... अधिकारी हूँ ......... नेचरल योगी हूँ ........ योगबल वाला सर्व श्रेष्ठ पुरुषार्थी हूँ ........ और कर्मभोग पर विजयी हूँ .......सागर का बच्चा हूँ ....... सर्व प्राप्ति सम्पन्न हूँ .........सर्व खजानों का मालिक हूँ ......... पाना था सो मैंने पा लिया .........
योग कोमेट्री .............................. .२) पतित पावन की सन्तान मैं आत्मा मास्टर पतित पावन हूँ ......... ज्ञान सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर ज्ञान का सागर हूँ ......... प्रेम सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर प्रेम का सागर हूँ ........ पवित्रता के सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर पवित्रता का सागर हूँ ......... सुख सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर सुख का सागर हूँ ......... शान्ति सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर शान्ति का सागर हूँ ........ आनन्द के सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर आनन्द का सागर हूँ .......... सर्वगुणों के सागर की सन्तान मैं आत्मा सर्वगुण सम्पन्न हूँ .......... सर्व शक्तियों के सागर की सन्तान मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ .......... मैं बाप समान हूँ .......... सुखधाम का मालिक हूँ ......... सफल सम्पन्न सम्पूर्ण भरपूर और विजयी हूँ .......... आदि मध्य अन्त को जानने वाला त्रिकालदर्शी हूँ .......... बाप समान निष्काम सेवाधारी विष्व का मालिक हूँ ......... नेचरल स्वराज्य अधिकारी सो नेचरल योगी हूँ ......... निराकारी हूँ ...........बिंदी हूँ ......... अद्धेत धर्म वाला देवता हूँ ...........
ज्ञान सूची .......................... घर्म शास्त्र सिर्फ ४ है ......... गीता धर्म शास्त्र है ......... जिससे ३ धर्म अभी स्थापन होते हैं, न की सतयुग में ......... निष्काम सेवाधारी एक बाप ही है ........... बाकि हम सब जो कर्म करते हैं उसका फल अवश्य मिलता है ......... देवी देवता धर्म वालों की संख्या बहुत होनी चाहिए ........ परन्तु देवी-देवता धर्म वाले फिर और और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं ......... पहले पहले बहुत मुसलमान बन गयें फिर बौद्धि और क्रिश्र्च्यन भी बहुत बनें है ......... देवता धर्म का तो नाम ही नहीं है ............
Om Shanti Divine Angels!
Points to Churn from the Murli of June 29, 2011:
My Baba…Sweet Baba…Loving Baba…Kind-hearted Baba…Compassionate Baba…
Praise of Baba:
The Supreme Father the Supreme Soul is…the True Father...the True Teacher... an Altruistic Server...the Purifier...the Ocean of Knowledge....... the Incorporeal One...the Father from beyond this world...
Star Point: (Practice all day):
I am the decoration of the Brahmin clan...the master of the world...
Please repeat each point 12-15 times, very slowly and churn each point at least for 5 minutes in a soul conscious state:
Study of the Soul and Self-Respect:
1. We- I am a soul…a master of the world...
2. We- I am a soul…a trikaldarshi soul...(knower of the three aspects of time)
3. We- I am a soul…master knowledge-full...like the Father...
4. We- I am a soul…I am a deity of the one religion...
5. We- I am a soul…a master and a child...full of all attainments...
6. We- I am a soul…the child of the Ocean...a master ocean...
7. We- I am alokik...with full rights...a master and a child...
8. We- I am a soul…a full and complete child of the full and complete Father...a natural yogi...
9. We- I am a soul…I claim a right to be a natural master of the self...
10. We- I am a soul…the most elevated yogi...I gain victory over the sufferings of karma...
Yog Commentary:
I am a soul... resident of the incorporeal world...the decoration of the Brahmin clan...playing my part on the field of action...I am a fortunate Brahmin...I establish the kingdom of the original eternal deity religion on the basis of shrimat... We, the souls, are children of the One Father...all souls are brothers...I am full of intoxication...the master of the world...a master and a child...I am the alokik child of the alokik Father...unique...sensible... the pure child of the Father...I have all rights... a natural yogi... the most elevated effort-maker with the power of yoga...victorious over the sufferings of karma...the child of the Ocean...full of all attainments...the master of all treasures...I attained what I wanted to attain...
I am a master purifier...the child of the Purifier Father...a master ocean of knowledge...the child of the Ocean of Knowledge...a master ocean of love....the child of the Ocean of Love... a master ocean of purity...the Ocean of Purity...the master ocean of happiness...the child of the Ocean of Happiness...the master ocean of peace...the child of the Ocean of Peace...the master ocean of bliss...the child of the Ocean of Bliss...the master ocean of all virtues...the master almighty authority...the child of the Almighty Authority...I am equal to the Father... the master of the land of Happiness...successful, complete, perfect, full and victorious...I am trikaldarshi...I know the beginning, the middle and end of the cycle...I am an altruistic server like the Father...I am a natural yogi...I claim a right to be the natural master of the self...I am incorporeal...a point...a deity of one religion...
There are only four religious scriptures...Geeta is a religious scripture, from which three religions are established now, not in the golden age...the Father is the only Altruistic Server...for whatever actions we perform, we certainly get the fruits...there should be a lot of those belonging to the deity religion...but they have converted to other religions...in the beginning a lot of them became Muslims, then Buddhists and then Christians...there is no name left of the deity religion..