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- विचार सागर मंथन: फ़रवरी २३, २०१२
Posted by : PooMac Photography Studio
Wednesday, February 22, 2012
ॐ
शान्ति दिव्य फरिश्ते !!! विचार सागर मंथन: फ़रवरी २३, २०१२
बाबा की महिमा:
परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं...मेरा बाबा...प्यारा बाबा...मीठा बाबा...दयालु बाबा...कृपालु बाबा... सत बाप...सत टीचर...सतगुरु...शान्ति के सागर...ज्ञान का सागर...विचित्र...गॉड फ़ादर...साजन...मोस्ट बिलवेद... पतित पावन...सदगति
दाता....रचयिता...परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं...मेरा बाबा...प्यारा बाबा...मीठा बाबा...दयालु बाबा...कृपालु बाबा... सत बाप...सत टीचर...सतगुरु...शान्ति के सागर...ज्ञान का सागर...विचित्र...गॉड फ़ादर...साजन...मोस्ट बिलवेद... पतित पावन...सदगति
स्वमान और आत्मा अभ्यास:
१. हम अजर, अमर, अविनाशी, अशरीरी शान्त स्वरूप आत्माएँ, निराकारी दुनिया की रहवासी, निर्वाणधाम की निवासी, बाप केसाथ वापिस घर जानेवाली, निश्चय बुद्धि, आज्ञाकारी, फरमान बरदार निरन्तर योगी हैं...देह सहित देह का भान, सम्बन्ध,सम्पर्क, देह अभिमान, देह अहंकार से मुक्त, देही अभिमानी, आत्म अभिमानी, रूहानी अभिमानी हैं...हम अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करनेवाली, शिव बाबा से झोली भरने वाली, मुक्ति जीवन - मुक्ति का वर्सा पाने वाली , प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे और शिव बाबा के उत्तम , पौतरे और पौतरियाँ हैं...
२. हम आत्माएँ, एक शिव साजन की सजनियाँ हैं ...एक ब्राईडग्रूम की सब ब्राइड हैं...रचता और रचना की नॉलेज में निश्चय रखनेवाले आस्तिक, औरोँ को आस्तिक बनानेवाले ईश्वरीय औलाद हैं... चक्र के आदि मध्य अंत का नॉलेज वाले त्रिकाल दर्शी हैं... स्वदर्शनचक्रधारी हैं... बाप की श्रीमत पर चल भारत को ऊँच ते ऊँच बनानेवाले, ब्राह्मण चोटी के सबसे उत्तम हैं...सर्व गुण संपन्न १६ कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, डबल अहिंसक वाइस लेस वर्ल्ड, गोल्डन एजेड, सुंदर फ़र्स्ट क्लास प्रकृति वाले भारत के राजा रानी हैं...
३. हम आत्माएँ, राज योगी, ऋषि राज, राज ऋषि, योगी राज हैं...राजा के साथ साथ बेहद के वैरागी हैं...चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वास्तु में, लगाव नहीं रखनेवाले, स्वराज्य अधिकारी हैं...मन, बुद्धि संस्कार सब अपने वश में रखनेवाले पूरानी दुनिया से वैराग्य रखनेवाले, राज ऋषि हैं..सिर्फ़ बाप को अपना आधार बनानेवाले समझदार हैं...
स्टार पॉइंट :- हम आत्मायें मात पिता बापदादा का याद प्यार नमस्ते गुड मोर्निग मुबारक वरदान स्वीकार करने वाला बापका मीठा रूहानी सिकिल्धा - फरमानबरदार निरंतरयोगी हूँ --- ज्ञान :- मैं आत्मा सब से उंच और उत्तम त्रिकालदर्शीआस्तिक स्वदर्शन चक्रधारी ब्राहमण हूँ ... योग :- मैं आत्मा निराकारी दुनिया की रहने वाली हूँ ... अशरीरी हूँ ... शिव कीसजनी हूँ .... निरंतर योगी हूँ .... बाप के फरमान चलने वाली अशरीर आत्मा हूँ .... बाप समान ..... अशरीरी हूँ .... मैंनिराकारी निर्विकारी निरहंकारी हूँ ..... हम आत्मा शांति सागर की संतान है .... शांत स्वरूप है .... धारणा :- मैं आत्मअभिमानी , फरमानबरदार सर्वगुण सम्पन्न , सोला कला सम्पूर्ण , सम्पूर्ण वाइसलेस , मर्यादा पुरुशोत्तम डबल अहिंसकदेवता हूँ ...... सेवा :- मैं आत्मा आस्तिक बन आस्तिक बनाने वाला ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण हूँ ...... श्रीमत परभारतको श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाल निश्चय और नशे वाला ईश्वरीय संतान हूँ .....
आज है सतगुरु का गुरूवार -- अशरीर बन विशेष वरदान लेने का दिन ---- डे ऑफ़ नोलेज -- नोलेजफूल स्टेज ----- मैंलाइट - माइट से जगमगता हुआ दिव्य सितारा भ्रकुटी में मध्य में चमक रहा हूँ .... मेरे चारों और लाइट का दिव्य प्रकाशहै ...... मैं ज्ञान स्वरूप आत्मा इस मस्तक द्वारा पूरे शरीर का सन्चालन कर रही हूँ .... ज्ञान के सागर बाबा के ज्ञान कीकिरणे लेजर किरणों की तरह आत्मा पर आ रही है ..... मैं आत्मा भ्रकुटी के मध्य मैं बैठकर हाथों से कार्य करा रही हूँ ....मेरी यह भुजाएं मेरे यन्त्र है ..... मैं इनकी मालिक हूँ .... यह सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे अधीन है .... मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ ....मैं इस देह से भिन्न ... न्यारी हूँ .... अलौकिक हूँ .... मैं आत्मा मस्तक के मध्य बिराजमान होकर नयनों से इस विश्व केविशाल नाटक के देख रही हूँ .... कैसी सुन्दर यह रचना है .... इसमें सभी आत्मायें अपना अपना पार्ट बजा रही है .... यहाँसभी आत्मायें निर्दोष है ... यह नाटक सत्य है ... यहाँ मैं आत्मा अपने निज स्वरूप में स्थित हूँ ... मैं आत्मा अपने अनादीस्वरूप में स्थित हूँ ... शुद्ध स्वरूप हूँ ... ज्ञान स्वरूप हूँ .... मीठे बाबा आपने मुझे ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर त्रिनेत्री बनादिया ...तीनो कालों का ज्ञान देकर त्रिकालदर्शी बना दिया ...
अब मैं परम शिक्षक शिवबाबा से निकलती हुई ज्ञान की गहरी नीली किरणों को मेरी और आते हुए देख रही हूँ ...... येकिरणे मेरे अन्दर ज्ञान के गहरे नीले क्षेत्र को आलोकित कर रही है ..... ज्ञान के भिन्न भिन्न गुह्य राज मेरे अन्दर स्पष्टहोते जा रहे है .... मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी , मास्टर
आज है सतगुरु का गुरूवार -- अशरीर बन विशेष वरदान लेने का दिन ---- डे ऑफ़ नोलेज -- नोलेजफूल स्टेज ----- मैंलाइट - माइट से जगमगता हुआ दिव्य सितारा भ्रकुटी में मध्य में चमक रहा हूँ .... मेरे चारों और लाइट का दिव्य प्रकाशहै ...... मैं ज्ञान स्वरूप आत्मा इस मस्तक द्वारा पूरे शरीर का सन्चालन कर रही हूँ .... ज्ञान के सागर बाबा के ज्ञान कीकिरणे लेजर किरणों की तरह आत्मा पर आ रही है ..... मैं आत्मा भ्रकुटी के मध्य मैं बैठकर हाथों से कार्य करा रही हूँ ....मेरी यह भुजाएं मेरे यन्त्र है ..... मैं इनकी मालिक हूँ .... यह सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे अधीन है .... मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ ....मैं इस देह से भिन्न ... न्यारी हूँ .... अलौकिक हूँ .... मैं आत्मा मस्तक के मध्य बिराजमान होकर नयनों से इस विश्व केविशाल नाटक के देख रही हूँ .... कैसी सुन्दर यह रचना है .... इसमें सभी आत्मायें अपना अपना पार्ट बजा रही है .... यहाँसभी आत्मायें निर्दोष है ... यह नाटक सत्य है ... यहाँ मैं आत्मा अपने निज स्वरूप में स्थित हूँ ... मैं आत्मा अपने अनादीस्वरूप में स्थित हूँ ... शुद्ध स्वरूप हूँ ... ज्ञान स्वरूप हूँ .... मीठे बाबा आपने मुझे ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर त्रिनेत्री बनादिया ...तीनो कालों का ज्ञान देकर त्रिकालदर्शी बना दिया ...
अब मैं परम शिक्षक शिवबाबा से निकलती हुई ज्ञान की गहरी नीली किरणों को मेरी और आते हुए देख रही हूँ ...... येकिरणे मेरे अन्दर ज्ञान के गहरे नीले क्षेत्र को आलोकित कर रही है ..... ज्ञान के भिन्न भिन्न गुह्य राज मेरे अन्दर स्पष्टहोते जा रहे है .... मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी , मास्टर